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दुक्खी की चाट..सुक्खी की मिलोन&

सुल्तापुर का दोस्तपुर
मैं देखूं टुकुर टुकुर
आम के बाग़ दूर ही दूर
जामुन भी पके हैं लदे खूब सजे हैं
बचपन की छुट्टियाँ
अब बीतें दिन की बतियां

ब्लाक का चौराहा
पीछे बाबा का अखाडा
ताल के पास आलस सूंघे
रावण भाई समेत ऊँघे

सीधी सी कुछ कच्ची पक्की सड़क
जब सिर्फ बायें की हो रहती है
वहीं इक नीम की छावं तले
जा हमारी याद रुके

दो आँगन लांघे
चौखट फांदे
हाँफते खिलखिलाते
निकलती थी टोली
पास पड़ोस दंग कहते
लो आ गयी पहलवान की तिजोरी

शाम का शुरूर... आगे थोड़ी दूर
थी बाबा की चक्की
जिसकी थी बात पक्की
नन्ही हथेलियों पे नन्हे से सिक्के
हर इक को मिलते थे चुन चुन के

घसेटू को हिदायत
ले जाना ख़याल से
बाज़ार के मोड़ पे ....
वहीं जहां थी ठेले पे
दुक्खी की मिलोनी और चाट

ठेले पे दुक्खी बनाता था टिक्की
पास खड़ा बेटा सुक्खी मिलाता था मिलोनी
पानी बताशे की पारी किसकी थी ?
इस सवाल पर होती मासूम ठिठोली

दुक्खी की नज़र पैनी
सुक्खी की मुस्कान सयानी
दुक्खी डांटें रहता सुक्खी को
सुक्खी हँसता सुनता दुक्खी को
बाल मन कभी दुक्खी को देखता ....कभी सुक्खी को...
मस्त तो दोनों ही थे... मस्ती भी बांटते थे...
पर इक चौकन्ना था एक बेपरवा था....

भर पेट खा ...कुछ खाली पत्ते फेंख
कुछ भरे घर के लिए समेंट
कभी उनसे ये कहते थे
अगली गर्मी फिर आयेंगे
तुम्हारी मिलोनी चाट खायेंगे
... पर सुक्खी शर्त हमारी
गर दुक्खी को हंसाया
तो मिलोनी दुगुनी खायेंगे.....

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