मीठी हुल्लड़ ! ढाबे पे जब भीड़ बढी
उबल उबल मैं खीज रही
मुन्नी की छन्नी ने बचाया
फिर छोटू की केतली ने बहलाया
फिर कुल्हड़ कुल्हड़ बंटी बंटी
... सोंधी सोंधी सिमटी सिमटी
सोखी में शोखी की हंसी
कुछ गीली बदमाशी
क्यूँ कहूं..कुछ खामोश शैतानी है...
चाय हूँ.... तुम गर मिटटी के माधो कुल्हड़ हो
मैं मीठी हुल्लड़ हूँ ! |