के आप ज़ुरूरी हैं! चटखनी लगा रखी समझ के घरोंदे में
ठकठका हम रहे अपने ही दाएरे में
कुछ तो कहा था हमने इशारे में ......
इतनी नहीं जुर्ररत दूरी के आईने में
... पलकें मूंदें ही सही ...नींद की आगोशी में ही सही ...
पर फुसफुसा जो कह गए ...हम भी खुश सो गए....
के हमारी मजबूरी है....के आप ज़ुरूरी हैं ....
ख़ामोशी को भी हुआ खनकने का गुमाँ
क्या उसे भी चूड़ियाँ पहना आयी ये जुबां
वो कहते रहे... हम मुस्कुराते रहे
के हमारी खुमारी है....आप ज़ुरूरी है ....
फिजां की लहरों में थी कोई हलचल
वो भी हडबडाई कभी इधर थी कभी उधर
कैसे कब हुआ ...उन्हें क्यूँ नहीं थी खबर
के आप सी बीमारी .... आप ज़ुरूरी है..
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