अंदाज़े ने यूँ तो हमारे अंदाज़े ने हमें बहोत रोका टोका
कमबख्त निगोड़े पैर थे की पर थे उड़ ही गए..........
अब जब उड़ ही गए तो क्या कहैं ...क्यूँ न इन फिजाओं में बहें
अंदाज़े से पुछा ...कहो क्या कहते हो....
तुनक कर कहा ...पतंग हो नहीं
...
जो डोर बन खेंच लें ...अब जो उड़ गयी हो तो मुड़ न देखो
नील भी कह रहा ...अंदाज़े से क्या गिला...
फांद कर जो फुर्र हुई उस कशिश का क्या शिकवा....
खैर भी कह रहा अंदाज़े का करो शुक्रिया
रोके टोके पे ही ठहरा रहा...पहरेदारी अच्छी थी...
अब आगे की उड़ान आपकी थी ....
चैन की आगोशी थी फिर भी इक ख़ामोशी थी
उड़ने का ख्वाब था उड़ चले ....ख्वाबगाह की तलाश कर चले
गर कहीं वक़्त मिला फिर अंदाज़े को रोकेंगे टोकेंगे ....थोड़ी गुफ्तुगू कर लेंगे...
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