इक उम्र गुजार चुके हैं इक और गु
हांफता हूफता वो भागा भागा आया
कह रहा था कह रहा हूँ समझो ये साया
साफगोई पसंद रही साफ़ साफ़ बताओ
यूँ खड़े खड़े गोल गोल न घुमाओ
...
ठेहरो कहे देते हैं की कह रहे
अब की बार जो समझी नहीं फिर न कहना खोया
इक उम्र गुजार चुके हैं इक और गुजारनी है
समझने को शायद ये सदियाँ भी छोटीं हैं |