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उनका नज़ारा और खोना हमारा

उनका नज़ारा और खोना हमारा
उड़न छु यूँ सब चैन हमारा
होश को भी नहीं अब यह दर गंवारा
वो उड़ा उड़ा हमें राह भटका भटका
फिर क्यूँ इंतज़ार इस बंधन की रिहाई का
...
खाब सा साथ और हम
चाहत में खोये प्यासे परेशां
बला की रोशनाई या खुदाई
पर्दा हटा और हम फ़ना फ़ना
अब न रहे हम न हमारा जहाँ

दिन का उजाला और चुप अकेला चाँद
वो देवदार नहीं उग रहा उस ऊँचाई उस छप्पर
अब यूँ आपकी रौशनी मुंह छुपाये छुपाये सूरज
और आपकी परछाईं बचाती जाती वो वही देवदार

बेकार काटी ज़िन्दगी
और यूँ बेज़ार गुज़ारे सारे रात और दिन
वही रह गया जो गुज़ारा आप संग

न जली न तपी जो इश्क की लौ में
दिल ये जमा जमा ... और कच्ची सी ज़िन्दगी

फिर क्यूँ ये आपको पाने
ये रेंगता उड़ता चलता भागता
कभी पंख बन कभी चक्के सा ....किस कारवां को खींच
आप तक कौन पहुंचा यूँ पैरों को सींच !

उनका नज़ारा और खोना हमारा
उड़न छु यूँ सब चैन हमारा
होश को भी नहीं अब यह दर गंवारा
वो उड़ा उड़ा हमें राह भटका भटका
फिर क्यूँ इंतज़ार इस बंधन की रिहाई का

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