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मुखबीर!

महफूज़ महल में सोये थे सुन्दर सपनों में खोये थे
धम्म धम्म वो धीर धीर...
रेंग रेंग कभी तीर तीर
वो बढ़ चला वो चल चला
बनके मेरा ही मुखबीर

यह झटक मटक यह उठा पटक
हम पलकें खोले ठिठक ठिठक
ये कैसा पागल पंछी है
इसकी आंखें तो कंची हैं
अरे रुक रुक जरा ठहर ठहर
ये किस दिशा इस पहर पहर

ढाना हो जैसे कहर कहर
वो मंडराए इधर उधर
पर्दों पीछे छिप गए
नींद होश सब उड़ा गए
गर जो इसे हम दिख गए
खैर नहीं हमारी थी
अब तो बात बड़ी भारी थी

जाओ जाओ जल्दी जाओ
जैसे आये चुपके दबे पांव
चोरी हमारी हमारे गांव
अब दुबके दुबके चले जाओ
ये डोलना बहक बहक
... और लोटना चहक चहक
हम भी अचके सोचे हैं
इन्हें दौरे क्यूँ पड़े हैं

उड़ जाओ यूँ उड़ जाओ
उस नदिया के तीर तीर
खबरी लाल को खबर मिलेगी
फिर उसके अख़बार छपेगी
मुसेलाल मूंछे दबा मुस्काएगा
ये मुखबीर बड़ा होशियार
बाबू खबर अगर पक्की है तुम्हारी तरक्की है

तुम खुश हो जाना हम भी चैन पाएंगे
इस अनचक्के के जागरण से बच पाएंगे
थोड़ी राहत हमारी होगी खुली सांस ले पाएंगे
इस उलूल जुलूल के नज़ारे से हम भी बच ही जायेंगे
खबर वही जो खबरी लाये बाकि शक्की से राम ही बचाए



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