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पीपल छाँव पी रही थी पल

पीपल छाँव पी रही थी पल
चहक बहक उडी मुड़ी पाती आयी
यूँ फेरती नज़र.. मैं पूछूं किधर?
पी रही थी मैं यूँ बहक रही हो तुम?

यूँ पीछे आओ.. अब आलस न समझाओ
ये हवा है नयी ...ज़रा चलो इसके पीछे
अब हम तुम ये बूझें थोडा इससे उलझें
है तो सिरफिरी हौसले की परी

इक तो हम होश के गरीब
आधे जागे आधे सोये से नसीब
तीजा तुम ले आयीं नया फतून
जो बूझ लो अकेले तो हम क्यूँ चलें

जो चल न पडीं संग हमारे
देख लो कहीं जंग न लगे तुम्हारे
उठो ज़रा होश कमाओ
थोडा सा जोश मिलाओ

आओ पूछो बावरी से
रेंगती फिसलती क्यूँ
लिख रही ये कुछ हम पर
किसी के पक्के इशारे

क्यूँ बाचूँ मैं जो बावरी है
लिखेगी मिटावेगी
फिर आढी तिरछी फिरेगी
पी रहे थे पल पीने दो ....इसे बांचेगे कल

तुम्हारी इस कल कल की दुहाई
में न खो जाये तिलिस्म की सच्चाई
आधे होश में ही चल चलो
मिल कर बाँट लेंगे इसकी पाई पाई

जो आधे होश अब चल दिए
तो ठीठ क्यूँ घूर रही
चलो तुमभी बांच बाँट लो
इस तिलिस्म से उस तिलिस्म की खुदाई

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