जब भी आती हैं गलत वक़्त आती है! उसके आने की आहट का गिला नहीं
पर कमबख्त जब भी आती हैं गलत वक़्त आती है
अब जो तशरीफ़ ले ही आयी हो
ज़रा सबर से शराफत में रहो
तुम्हारे इमान की तो नीयत देख ली
अब रह रह नियम के फलसफे न फेंख री
इस कच्चे पक्के कागज़ी राहों के ..चंद लम्हों के सफ़र का क्या भरोसा
कहीं गच्चे खा बागी न बने ...और गिरे इधर उधर बन के कलमों का बोसा
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