बादलों की स्लेट पे ... बादलों की स्लेट पे
गर कहानियाँ लिखते
बूँद बूँद बरसतीं वो
कोरी ज़मीन की हथेली पे
रंगों की क्यारियां उगाती
... यूँ वहीं सरपट दौड़ा करतीं
कभी धुयें वाली चिमनियूं के सीने पे
कभी पहाड़ों के खुले जीने पे
कहीं किसी रेतीले मुंडेर पे
वहीं उसी भूसे की छोर पे ...
.....बादलों की स्लेट पे
गर कहानियाँ लिखते ! |