Welcome to Poetry Publishers!
Poetry
News
About the Author
About The Poet
Home
Poetry Control Panel

 

 

 

 

 

 

 


Please enjoy your visit.
 Poetic-Verses  
    208683 Poems Read.

और ज़िन्दगी तेरे सिरहाने कुछ 

खुद से भागने के कुछ चंद बहाने हैं
और ज़िन्दगी तेरे सिरहाने कुछ बंद कताबैं  हैं

सामने के सामने से नहीं डरते...
कताबों  के पन्नों से नहीं डरते...
हाँ उनके पलटने से सिहरते हैं...
कब खुश्क  हो जायें क्या पता

आगा पीछा के सोच से नहीं डरते
छपी हुई कहानियों से नहीं डरते
बस रूह की टप टपी से डरते हैं
जाने कब भिगो दे क्या पता

भीगने का शौक है गम नहीं
गुम कुछ सिरे हों गम नहीं
हाँ भीग गर सिल गए
या यूँ ही गल गए क्या पता....

उड़ते परिंदों के पर बांचते हैं
उड़ान की चाह में बिखेरे कुछ खोया जांचते हैं
कुछ अभी खिले अभी खाली घोंसलों को ताकते हैं
कुछ नया नहीं ये भी जानते हैं

बस उस चहचाहट की बाट जोहते हैं
ज्यूँ पर्दों के पीछे से झांकते हैं
यूँ पन्नों से भी बूझते हैं
बंद एक बहाना है....
आखिरी पन्ना नहीं जानना है ...

उठाते रखते पूछते सूझते
कभी खोलते कभी खिसकाते
कभी धकेलते कभी छोड़ते
कभी उनपे हँसना है कभी उनको छेड़ना है
केताबों को भी खूब पता है
मिजाज है कब बदल जाये क्या पता.....

Email Poem

Please Critique This Poem

Excellent Good Average Poor Bad

Comments

Email
(Optional)