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वो चाय की चुस्की ....


वो चाय की चुस्की
जो बढाती आँखों की मुस्की
वो रुपहले पर्दों से आती ज़र्द हवा
... वो थमते बोलों की सर्द जुबां.
कहीं यूँ पीछे चलें…
कहीं यूँ पलटते पन्नों की खुश्की…
यह माह ही ऐसा है …
कुछ जनवरी जैसा है …


कुछ फलसफे दादी ने सुनाये , कुछ नुक्तान्चिनी नानी ने मिलाये
बाउजी बैठे धीमे मुस्कराए, माँ की आँखों में गुनगुनाये
कहीं अदरक की तड़क है, कहीं काली मिर्च की फड़क है ..
पत्तियों का खिलखिलाना , और फिर झट से उबल जाना ..
कुछ इसमें तिलिस्म तुलसी का जादू है ..
वो चाय की चुस्की …ले आयी बीतें दिनों की मुस्की …

जब ताउजी ले आये गरमा गरम समोसे …कुछ मैंने कुछ Dinky ने ठुंसे
कुछ चुक्कू कुछ बेबी ने उड़ाए ..
दीदी कहे थम जाओ बेशर्मो … अभी यहाँ मेहमान हैं आये ..
बहादुर बैठा खींसे निपोरे ..मेहमान तोह हैं छिछोरे ..
चाय की क्या औकात है दीदी … जब रम और व्हिस्की साथ हो दीदी …
घर में हुआ कोहराम …मेहमान भागे सरे आम ….
पेट के बल हँसते हँसते ..जुबां से निकल गयी थी सिसकी ….
वो चाय की चुस्की …. बढाती आँखों की मुस्की …

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