गुलमोहर और गुलेल!
बच्चों का खेल …बागीचे के पेड़ …
यूँ चहकती आवाज़ …जैसे कोमल नाद
...
पलाश कहे गुलमोहर से अभी न रूठो …कभी तो छोड़ो …
टेसू …अपने गेसू फेलायेगा …अभी तो बहोत मज़ा आएगा …
लडती झगडती …फागुन है आयी …फुदकने दो …
गुलमोहर गुलेल को भूलो …गुलाल मलने दो …
ये खिलखलाती हंसी …ये बचपन … अब तो पसीजो …
ये मुखोटा निकालो …यूँ चौखटा संवारो …
तुम खिले तो ये भी खुलेंगे …हमारे किस्से खूब सजेंगे
डगमग डगमग …यूँ पुरवाई है आयी ...
जैसे भाँग से नहाई …फिर भी देती है दुहाई …
की पीने का शौक नहीं …पिला देते हैं …
जिस गली से गुजरो …वो कहैं …
क्यूँ हो तुम तमतमाई …लो जी लो ठंडाई …
छींट कशी बातों की रोज़ करते हो …
आज गर रंगों की पड़ी तो जाने दो …
गुलमोहर …गुलेल को भूलो …गुलाल से खेलो …
कब पड़ी कैसे पड़ी …कहाँ लगी …किसने लगाया ...
कौन सच्चा ..कौन झूठा …
ये सवालों का इतिहास लेता है उबास ….
इस मौसम में तुम क्यों बैठो उदास …
लो पिचकारी …रंगों की बौछार होने दो …
गुलमोहर …गुलेल को भूलो गुलाल लगने दो …
जब यूँ बने शकल …न लगानी पड़े अकल …
सिर्फ आँखों की रौनक …दाँतों की चमक
से रहे हम सराबोर … चाहे चलें जिस ओर ..
कभी तुम खींचो कभी हम खींचे
ये प्यार भरी डोर …जैसे नाचे पपीहा मोर …
गुलमोहर …गुलेल को भूलो …गुलाल उड़ने दो ….
पापड़ …गुजिया …पूरी …पुआ …सबमे एक है दुआ …
ज़िन्दगी का खेल …दो दिन का मेल …
इसको लो भींच …अपने दिलों से सींच …
एक नयी फसल होगी …एक नया फ़साना होगा …
तुम मुस्कराए तो ये बच्चों की टोली भी मुस्कराएगी …
तुम हंस पाए तो ये बोली भी सवंरेगी …
देखो …वो गए गुब्बारे …लेकर तुम्हारा गुबार …
गुलमोहर …गुलेल को भुला …जभी तो गुलाल से लग रहें हैं गाल |