एक सुफेद बाल! एक सुफेद बाल खिला... लोहरी के दिन मिला...
पोपकोर्न जैसा फूट... कर यूँ सामने दिखा
छुई मुई सी सांवरी ....लो चली भुट्टों की गली
हमने सोचा खुद से पुछा ....लो आ गए दिन खिजाब के
या फेर दे इनपे भी रंग हिजाब के
... तपाक से बोल पड़ा अभी अभी तो आया हूँ
तुम कहते हो दिन ढला
दिन की बात करते हो मियाँ...
यहाँ तो जनम से ही सब कुछ ढला..
मासूम सी मुस्कान फीकी पड़ती जाती है
उम्र की आफत यूँ पैंतरे दिखाती है....
ज्यूँ ज्यूँ बढती जाती है...
रंग छीनती जाती है....
कुछ सोच तसल्ली दी...
तकाजे की है बात...
अब कह सकेंगे
देख लो यूँ धुप मैं नहीं सुफेद किये ये बाल...
कुछ तो वजन होगा अपनी बात का
यूँ बात बेबात....
बढ़ रही तो बढ़ने दो...
राह बहुत आगे पडी...
अभी तो एक का ही हुआ इजाद
अभी तो देखना हैं पूरी कौम का अंदाज़.... |