शायर सुधरते क्यूँ नहीं... ग़ालिब से सुबेरे पूछा ...
ये शायर सुधरते क्यूँ नहीं...
किस फ़िराक में घूमें हैं
फक्कड़ फांके चूमें हैं
दुनिया उनपे हंसती है
और वो दुनिया पे हँसते हैं...
मियाँ बात बताऊँ पते की
ग़ालिब की भरी पोटली की
शायर गर सुधर गए फिर
मिसरे की रुबाई न होगी
कसीदे में मसीहाई न होगी
कुछ काटे हैं ज़माने रसीदों की ड्योढ़ी पर
ये काटे हैं ज़माने पन्नों की सियाही पर
एक घूमाता हरे ख्वाब में
एक चखाता लम्हों का जायजा
जिसने जिसको अपनाया
उसने उसको अपना पाया
रसीदों की रोटियां और लम्हों की मोतियाँ
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