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सुकून में सेंधमार

महफूज़ सी बज़्म में कांपती सी नज़्म
सुकून में सेंधमार का आगाज़ था या दम

दफा दफा कहैं हैं हम
नफा नफा गिने हैं वो

एक भोली नज़्म पे
अपना सा हक जताते हैं वो

तखलिया तखलिया हम कहैं
कुछ तो नहीं लिया वो बकें

एक तो ये आफत ए फलसफा
दूजा उसपे ये नाफ़रमानी का इजाफा

दुरुस्त तो देमाग है
ये चाल नहीं आम है

दावते हैवान का
शौक़ हैं पाले

अल्लाह उनका तुम्ही करो कोई फैसला
सेंध जो मारी है तो जाने न ये मेरा हौसला

हमें कोई बैर नहीं
पर अब उनकी कोई खैर नहीं

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