जाबजा देखतें हैं जाबजा देखतें हैं खाबगाह ढूंढते हैं
उड़ चुके जो बखत उनके पर गिनते हैं
हम भी सोचते थे वो दिल तोड़ते हैं
क्यूँ खबर नहीं कहीं खुद को तोड़ते हैं
बेवजा की लडाई खुद से हाथापाई
कहीं कुछ लम्हा अपना छोड़ते हैं
खुद से भाग रहे कुछ दिल के सिलसिले
आज अपने होने का सबूत ढूँढ़ते हैं
पास के शोर पे दूरबीन सी नज़र
अक्सर होती नहीं उन्हें अपने आप की खबर
कह चुके छिपाने को कई कब्र खोदे हैं मगर
इक आस है कहीं जो दफ़न नहीं करते
हम कुछ कहें तो दखलंदाज़ी है
जीतनी उन्हें खुद से कोई बाज़ी है
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