फिर कैफियत की बात करते हैं सुर्ख सुराही स्याह की
जर्द नहाई पन्नों की आह भी
फिर कैफियत की बात करते हैं
देखो सुखनवर फिर जाग जाते हैं
रास नहीं सर्द धुंए की ख़ाक
देखो बांचे चांदनी कोई आंच
चुप्पी की कुप्पी से छाने
चुलबुली चिकनी तन्हाई
जायका ऐ फ़साना तो तैयार हो
ना जाने ये फिजा कब फरार हो
सुफेद सादगी पे सतरंगी फितरत
खुदा की थी सुहानी कुदरत
सादा दिल उस पे रंगीन परत
बादामी बादामी संजीदा सूरत
यूँ जो चेहेकते हो
कसीदे मैं बेहकते हो
सूफियाना अंदाज़
यूँ शगुफ्ता शगुफ्ता
क्यूँ शायराना रफ्ता रफ्ता
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