बहके तराने दिलेतरुन्नुम का अंजाम सोचते हैं
खामखाँ कोई पैगाम बांचते हैं
इस जमती गलती फिजां में घूमते फिरते
जाने कैसे बहके तराने तैरते हैं
इक को रोका तो फुसफुसा भागा
दूजे ने तरेर देखा ....खैर नहीं जो तुमने रोका
कैसे से सिरफिरे बुलबुले हैं
घूम झूम कहें शोख दिलजले हैं
अपनी नहीं खबर खैरियत है
हमारी नहीं कदर गैरियत है
मौसम के मुसम्मी ...उछल कूद जब थक बैठना
फिर हमारी बारी देखना .. सूद समेत वापिस लेंगे
बिना खबर लिए यूँ न जाने देंगे
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