चाँद से फिर कभी मिलते हैं... छज्जे का मुहाना
मुहाने का कोना
कोने की ओट
उसके नीचे आँखे मींचे
आँख मिचोली खेल रहे
... तुम्ही हो तुम्ही हो
यह बार बार यकीन ढूंढ रहे
अब इस बारी आये हो
तो क्या कहानी लाये हो
हमसे छुपा कुछ नहीं
बादल से खेल आये कहीं
अब भोले बन रहे
फुर्सत गर मिली अभी
अब दस्तक दे रहे
दूर खड़े टकटकी लगाये खड़े
कुछ तो सुनाओ
यूँ गूंगी बंसी बजा रहे
...
कुछ तो अपना लिहाज करो
कुछ तो चाँद जैसी बात करो
चाँद भी चुप रहा तो क्या ख़ाक बातें होंगी
दांत छुपाये यूँ डोल रहे पगडण्डी भी भूल गए
हवा का झूला ले आना उन्ही से बोल जाना
उन्हें पकड़ बांच लेंगे कुछ तो पन्ने भरेंगे
यूँ खिलखिलाए जाते हो
चाँदनी संग लिए आते हो
हमारी बातों का माखौल उडाये
बड़े मौज मैं झूलते हो
तुम्हारी पर्ची उड़ गयी
... हमसे शायद सड़ गयी
कान में फुसफुसा जाओ
आज की खबर....सच!
पक्की है! क्या मगर....
कैसे... कुछ तो ..
यह गलत था... हमें न यकीन था
तुम तो बताये जाते हो
हमारी नींद उड़ाए जाते हो
वापस आओ ...थोडा यकीन दिलाओ...
चाँद ने चाँद जैसी बात की
हमारे छंद की चंद शब्दों में मिट्टी पलीद की
फंसी कहीं हमारी सांस की नली
कैसे बतायें ... क्या माजरा है
गर न बतायें तो ....हाजमे का खतरा है
पन्नों को समझाया ...छुप चुप निकलते हैं
चाँद से फिर कभी मिलते हैं...
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