जूनून की आहट नब्ज की जमी ठंढी नमी पे य़ेह कैसी सरसराहट
जूनून की आहट पे य़ेह गलने की सुगबुगाहट
सुकून में सोये इन साँसों की फुसफुसाहट
के धीर धीर रख कदम आगाह करते हैं
तुरत फुरत जो बैह निकले तो तबाह करते हैं!
शोर तो बहोत है.... ऐसी चहलकदमी है
मौन मैं पडी ...कैसी यह ग़लतफ़हमी है
रोकती नहीं न रोक पाऊँगी
बस य़ेह लहरों सा बिफरना न सह पाऊँगी
बूँद बूँद आना लम्हों को थामती है
यूँ हौले हौले टपक टपक ज़िन्दगी सांस लेती है!
बेकाबू आंच में उबाल यूँ उफनते हैं
यूँ ही खौल खौल गिरते फैलते हैं
धीमी आंच पे जो जादू से चहलते हैं
यूँ ही फुदक फुदक वो बहलते संभलते हैं
कुछ कर गुजरने की शिददत में लौ की गुदगुदी
मुददत से इसी ख्वाईश को महका रही य़ेह तिशनगी!
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