बस करो बस करो ! इंजर पिंजर जिंजर लोग
कबूतरों में बने तीतर लोग
घुटते सड़ते मरते लोग
बस करो बस करो
ये सिपाही भी थकता है
उसका दिन भी ढलता है
किंकर्तव्यविमूढ़ या चकनाचूर
आइना गूढ़ क्या करे मूढ़
देखे घूर घूर कभी पास पास कभी दूर दूर
...
दिनभर का लेखा जोखा और रात का बचा खुचा टका
बस करो बस करो
ये पहरेदारी भी पसरती है
यूँ खटिये पे सिसकती है
अटकल बटकल घुमे घनचक्कर
दिन के तारे फांके फक्कड़
सटक गयी तो पटक गए
...
अटक गयी तो झटक गए
बस करो बस करो
ये पागल भी संजीदा है
तभी तो ये जिन्दा है
मगज का माठा
भी किया आधा आधा
गरज का ऐसा गांठा
...
कुछ परोसते कुछ पेलते
कुछ ठूंसते कुछ उगलते
बस करो बस करो
ये बदहजमी भी डरती है
वो भी छुट्टी मांगती है |