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 Poetic-Verses  
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इक  बात  कहूं ....

इक  बात  कहूं ....

इक  बात  कहूं ....

आँखों  से  यूँ  न  बहना  तुम

पलकों  के  बाँध  बनाये  हैं

उन्हें  तोड़  न  जाना  तुम

इक  बात  कहूं ....

इक  बात  कहूं ....

 

 

ख़ामोशी  मैं  यूँ  न  बोलना  तुम

सन्नाटे  की  गूँज  मंडराती  है ...

मैं  भागती  हूँ  वो  पीछे  आती  है ...

इक  बात   कहूं ...

इक  बात  कहूं....

 

 

इक  बात  कहूं ...

मैं  भाग  रही ...तुम  ढीठ  बड़ी ...

काहे   की  लड़ाई ...कहे  की  ये  बूझ  बूझाई

बजते  हैं  झंकारो  से ...आते  किसी  हवा  के  तारों  से ...

इक  इक  तरंग  की  कैद  ...मैं  जाने  क्यूँ  छुडाये  भाग  रही ...

इक  बात  कहूं ...

इक  बात  कहूं ...

 

 

इक बात कहूं

हंगामा है बरपा...पंचनामा हो रहा

कोई तो मिटा था...कोई तो लुटा था...

अब तफ्तीश की बारी थी... भीड़ यूँ भेद रही

जाने क्या घटना हुई...जाने क्या बीमारी थी...

... यूँ आयी यूँ गयी ...पलक झपकते मुई क्या कर गयी...

इक बात कहूं...

इक बात कहूं...

 

 

इक बात कहूं

खुसरो  से सुना था ...कामिल का इल्म ना था

कमली यूँ गा रही... साज़ की तालीम नहीं

पगली यूँ राग बना रही... टोह टोह लोग थक गए...

भरी धूप क्यूँ बदली सी छा रही...

इक बात कहूं

इक बात कहूं

 

 

इक बात कहूं....

शालीमार याद आता है

बर्फीली वादियाँ और कुनकुनी धूप

फव्वारों की खनखनाहट और फूलों की मुस्कराहट

सुबह सवेरे कुछ ऐसी हैं सर्दीयों की आहट

इक बात कहूं

इक बात कहूं

 

 

इक बात कहूं...

बाँध तोड़ गए तुम

और अब सिर्फ बाढ़ ही बाढ़ है

तैरने का इल्म तो नहीं डूबने का खौफ सही

तुम्हे तुम्हारी आज़ादी मुबारक सही

इक बात कहूं

इक बात कहूं

इक बात कहूं...

पन्नों मैं न बसना तुम

सब किताबी बातें हैं

इन्हें सच न समझना तुम

लिखने वाले लिख गए पढने वाले यूँ ही बिलख रहे

इक बात कहूं

इक बात कहूं

 

 

इक बात कहूं...

परचम की पर्छैयाँ और कागज़ी पर्चियां

कोई किला फ़तेह करे

कोई सूने कागज़ में आवाज़ करे

मंजिल तो आज़ादी थी

... पर एक को जीत प्यारी थी एक जज्बे से हारी थी

इक बात कहूं

इक बात कहूं

 

इक बात कहूं...

सच कहूं के झूठ कहूं

अब कोई बात नहीं

बात बात मैं बेबात की शिरकत

कुछ पागलों की है आदत

... शायद फिर कुछ हलक में फंसे और जुबां अटके

तब पन्नों पे मिलने आयेंगे तब पन्नों पे मिलने आयेंगे

इक बात कहूं

इक बात कहूं

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